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देव्यो॑ वम्र्यो भू॒तस्य॑ प्रथम॒जा म॒खस्य॑ वो॒ऽद्य शिरो॑ राध्यासं देव॒यज॑ने पृथि॒व्याः। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे ॥४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

देव्यः॑। व॒म्र्यः। भू॒तस्य॑। प्र॒थ॒म॒जा इति॑ प्रथम॒ऽजाः। म॒खस्य॑। वः॒। अ॒द्य। शिरः॑। रा॒ध्या॒स॒म्। दे॒व॒यज॑न॒ इति॑ देव॒ऽयज॑ने। पृ॒थि॒व्याः ॥ म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे ॥४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:37» मन्त्र:4


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विदुषी स्त्रियाँ कैसी होवें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (प्रथमजाः) पहिले से हुई (वम्र्यः) थोड़ी अवस्थावाली (देव्यः) तेजस्विनी विदुषी स्त्रियो ! (भूतस्य) उत्पन्न हुए (मखस्य) यज्ञ की सम्बन्धिनी (पृथिव्याः) पृथिवी के (देवयजने) उस स्थान में जहाँ विद्वान् लोग सङ्गति करते हैं, (अद्य) आज (वः) तुम लोगों को (शिरः) शिर के तुल्य मैं (राध्यासम्) सम्यक् सिद्ध किया करूँ (मखस्य) यज्ञ का निर्माण करनेवाली (त्वा) तुझको (मखाय, शीर्ष्णे) शिर के तुल्य वर्त्तमान यज्ञ के लिये (त्वा) तुझको सम्यक् उद्यत वा सिद्ध करूँ ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जब तक स्त्रियाँ विदुषी नहीं होतीं तब तक उत्तम शिक्षा भी नहीं बढ़ती है ॥४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विदुष्यः स्त्रियः कीदृश्यः स्युरित्याह ॥

अन्वय:

(देव्यः) देदीप्यमानाः (वम्र्यः) अल्पवयस्यः (भूतस्य) उत्पन्नस्य (प्रथमजाः) प्रथमाज्जाताः (मखस्य) यज्ञस्य (वः) युष्मान् (अद्य) (शिरः) शिरोवत् (राध्यासम्) (देवयजने) विदुषां सङ्गतिकरणे (पृथिव्याः) (मखाय) यज्ञाय (त्वा) त्वाम् (मखस्य) यज्ञस्य निर्मापिकाम् (त्वा) त्वाम् (शीर्ष्णे) शिरोवद्वर्त्तमानाय ॥४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे प्रथमजा वम्र्यो देव्यो विदुष्यो ! भूतस्य मखस्य पृथिव्या देवयजनेऽद्य वः शिरोवदहं राध्यासं मखस्य त्वा मखाय शीर्ष्णे त्वा राध्यासम् ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यावत् स्त्रियो विदुष्यो न भवन्ति, तावदुत्तमा शिक्षा न वर्द्धते ॥४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जोपर्यंत स्रिया विदुषी होत नाहीत तोपर्यंत उत्तम शिक्षणाची वाढ होत नाही.